Haryana: राजनीति में सभी समाज का खासा योगदान रहता है. लेकिन एक खास समाज जो अक्सर अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि को खोजने का काम करता रहा है. जिसका आज के समय में हर बार सरकार बनाने में खास योगदान भी रहा है.
बात है रोड़ समाज की. जीटी बेल्ट से लगते हुए हर एक विधानसभा में खास वर्चस्व रखने वाला ये समाज खुद के वर्चस्व की लड़ाई लड़ता रहा है. अक्सर एक बात कही जाती है कि हरियाणा की राजनीति में रोड़ समाज और भाजपा का उदय एक साथ हुआ है. इससे पहले इनेलो का कोर वोटर कहा जाने वाला रोड़ समाज अब पूरी तरह से भाजपा का “किंग मेकर” बन गया है.
कारण?, सत्ता में भागीदारी और सगंठन में जगह मिलने से राजनैतिक भूमि का मिलना. हरियाणा खासकर उत्तरी हरियाणा की 12 सीटों पर अहम योगदान रखने वाला ये समाज 2014 से 2024 तक किंग की भूमिका में रहा है.
इन सीटों पर है दबदबा
रोहतक-सोनीपत को जाट लैंड कहा जाता है. हिसार सिरसा भिवानी को बागड़, वहीं उत्तरी हरियाणा को रोड़लैंड कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी. एक समय होता था जब चौ. शिवराम यहां के सत्ता पर राज करते थे. जनसंघ की मीटिंग से लेकर किसान मोर्चा तक की मीटिंग चौ. शिवराम के दरवाजे पर हुआ करती थी. 70 के दशक के बाद से अब 2014 का समय है जब किसी सरकार को बनाने में रोड़ समुदाय ने बढ़ चढ़कर योगदान दिया.
आइए जानते है किन सीटों पर है वर्चस्व
हरियाणा में ऐसी 10-12 सीट है जहां पर इस समाज का सीधा साफ असर है. असंध नीलोखेड़ी घरौंडा पूंडरी थानेसर करनाल इसराना इंद्री सफीदों कैथल कलायत गुलहा
पूंडरी और नीलोखेड़ी ता गढ़ माना जाता रहा है इस समुदाय का. जहां नीलोखेड़ी फिलहाल रिजर्व है वहीं पूंडरी से इस बार भी रोड़ विधायक चुन कर गया है. जबकि घरौडा से भी लगातार तीन बार रोड़ समुदाय से जीतकर हरविंद्र कल्याण विधानसभा पहुंचे है.
यहां निभाई “किंगमेकर” की भूमिका
इन 10 सीटों पर जहां रोड़ समुदाय सीधा सीधा असर डालता है वहीं बीते समय में इस समाज ने यहां से जीत हार का अंतर तय किया है. आईए आपको इस उद्हारण से समझाते है. हाल ही के चुनाव में जहां कांग्रेस की लहर थी. वहां इस समाज ने भाजपा उम्मीदवार के हार को जीत में और जीत को हार में बदल दिया.
जिला करनाल
करनाल जहां की सारी की सारी हारी हुई सीट भाजपा के खाते में डलवा दी
पहला नाम आता है असंध हलके का जहां भाजपा की जीत हुई. वहां करीब 31000 रोड़ वोट है, जो भाजपा अपने पाले में करने में कामयाब रही और नतीजा भाजपा की जीत
करनाल की दूसरी सबसे बड़ी सीट नीलोखेड़ी. यहां से कांग्रेस ने मौजूदा विधायक को टिकट दी. लेकिन यहां से भाजपा की जीत हुई क्योंकि भाजपा यहां के 60000 रोड़ वोट को साधने में कामयाब हुई
तीसरी सबसे बड़ी सीट घरौंडा है जहां से भाजपा ने जीत हासिल की है. जहां से भाजपा के हरविंदर कल्याण दो बार के विधायक को तीसरी बार जीतवा कर भेजा है. क्योंकि यहां 32000 रोड़ वोट है जो सीधा असर डालती है किसी भी नेता की जीत हार पर
करनाल का इकलौता चुनाव था जो भाजपा हारा हुआ मान रही थी. यहां से कांग्रेस की स्मिता सिंह ने अपनी जीत मान ली थी लेकिन जहां सारे लोग छोड़ कर कांग्रेस में जा रहे थे वहीं भाजपा ने सारा फोकस रोड़ समाज पर किया. नतीजा भाजपा की सबसे पहली हारी हुई सीट जीत में बदल दी गई, क्योंकि यहां रोड़ समाज डिसाइडिंग था
इंद्री से पूरा कंबोज समाज एक तरफ था. भाजपा के रामकुमार कश्यप जो की अपना चुनाव हारा हुआ मान रहे थे लेकिन हर हलके के जैसे भाजपा ने फोकस रोड़ समुदाय पर किया और नतीजा रामकुमार हारा हुआ चुनाव जीत गए, क्योंकि यहां से रोड़ समुदाय की 12000 वोट है. जो उनको सीधे सीधे टक्कर में ले आई.
जीटी बेल्ट का कुरुक्षेत्र जिला
थानेसर का इकलौता ऐसा बड़ा उदारण है जहां रोड़ समुदाय ने चुनाव ही पलट डाला. थानेसर सीट इसका सबसे बड़ा उदहारण है जहां सुभाष सुधा को हार का सामना देखना पड़ा. थानेसर सीट से भाजपा प्रत्याशी के पुत्र द्वारा रोड़ समाज के युवक की टांग तोड़ने के बाद हुई पंचायत और समाज के युवाओं में गए एक मैसेज से अशोक अरोड़ा की 3000 की हार को 3000 की जीत में बदल दिया.
सुभाष सुधा हमेशा से रोड़ समाज को लुभाने में कामयाब रहे है लेकिन चुनाव से पहले सुधा के पुत्र द्वारा समाज के एक युवक पर हुए आत्मघाती हमले ने चुनाव को पूरी तरह से पलट दिया, नतीजा सुधा की हार.
लाडवा में सीएम सीटी का सपना भी इसी समुदाय के सहयोग से होकर पूरा हुआ. यहां से रोड़ समाज की 4-6 हजार रोड़ वोट है. जो अच्छा प्रभाव रखती है
पेहवा में रोड़ समाज की करीब 2-3 हजार के आस पास वोट है जो डिसाइडिंग मोड में रहती है. सरकार में उनका योगदान रहा है.
कैथल में रोड़ समुदाय का डिसाइडिंग मोड़
पहली और इकलौती सीट है पूंडरी जहां से रोड़ समुदाय अपना विधायक बना पाता है. यहां से रोड़ समुदाय की 50000 वोट है जो सीधे सीधे हर बार अपना सरकार में हिस्सा रखती है. इस बार रोड़ समुदाय की मदद से भाजपा ने यहां हिस्ट्री क्रिएट की है. यहां से भाजपा को पहली जीत दिलाई है वहीं यहां से आजाद उम्मीदवार बनने का ट्रेंड भी तोड़ डाला है
कैथल में रोड़ समुदाय के करीब 5500 वोट आते है, जो पहले कांग्रेस का कोर वोटर माने जाते थे लेकिन सरकारो द्वारा सही समय पर काम न होने के कारण वो सारा वोट भाजपा की तरफ शिफ्ट हो गया नतीजा, भाजपा मे यहां से लीला राम गुर्रज के रुप में विधायक मिला. उससे पहले सुरजेवाला यहां से रोड़ समाज पर क्लेम करते रहे है. समाज ने सुरजेवाला का बढ़-चढ़ के साथ दिया.
गुलहा सीट पर भी 2-3 गांव रोड़ समाज के ऐसे है जो विधायक बनाने में बड़ा योगदान देते है
पानीपत-जींद-सोनीपत
इसराना सीट पर तो तीसरा सबसे लार्जेस्ट नंबर आता है. यहां करीब 24000 रोड़ समुदाय की वोट है. पानीपत की यह सीट से रोड़ समुदाय ने हर बार विधायक बनवाने में मदद की है. 2014 से लेकर 2024 तक सरकार के खाते में ये सीट डालकर यहां से सरकार बनाने में मदद की है. इसी का नतीजा रहा है कि भाजपा हर बार यहां से सबसे पहले इसी समुदाय पर फोकस करती है
जींद के सफीदों में इस बार रामकुमार गौतम को विधायक बनवाने में भी रोड़ समुदाय का खासा योगदान रहा है. यहां से करीब 9000 रोड़ वोट है. जो पूरी तरह से डिसाइडिंग मोड़ में है.
सोनीपत की सीट पर भी रोड़ समाज का खासा प्रभाव है यहां से रोड़ समाज की करीब 6000 वोट है जो सीधे सीधे हार जीत का फैसला करती है.
असल में रोड़ समाज को बारे में उनके जानकार एक बात कहते है कि इस समाज के पास राजनैतिक भूमि नहीं रही है. पॉलिटिकल पार्टियों द्वारा वोट लेकर उपहास किया गया. लेकिन आज समाज के पास एक राजनैतिक भूमि है, जो सत्ता हासिल करने के लिए सीधे सीधे 12 सीटों पर असर डालती है.