Olympics: ओलंपिक का समापन हो गया है. अब अगला ओलंपिक 2028 में अमेरिका के लॉस एजिलस में आयोजित किया जाएगा. अब हर ओलंपिक खत्म होता है तो एक कहानी छोड़ कर जाता है. इसी को लेकर बहुत पहले शरद जोशी ने अपने एक व्यंग्य में लिखा था “ओलंपिक वह जगह है, जहाँ हम हारते हैं।”
आईए हम आपको बताते है भारत का अब तक ओलंपिक का सफर..
80 के दसक का वो दौर जब भारत ओलंपिक में जाता था. साल 1984 से 1992 तक भारत की झोली में एक भी पदक नहीं आया था. लेकिन भारत का सुखा टूटा जाकर 1996 में. 1996 के अटलांटा ओलंपिक में भारत को एक कांस्य पदक मिला था जिसके साथ वह 71 वें स्थान पर पहुँचा था.
2000 के सिडनी ओलंपिक में 1996 वाला इतिहास रिपीट हुआ यानी भारत को कांस्य पदक मिला और वह 71वी पोज़ीशन पर रहा.
2004 के एथेंस ओलंपिक में पदक की संख्या तो 1996 और 2000 जैसी रही लेकिन पदक का रंग बदल गया। अब की बार एक रजत के साथ भारत 65 वें स्थान पर रहा।
अब आता है उम्मीदों वाला साल 2008. यह वो साल था जिसमें भारत का अब तक का सबसे सफल प्रदर्शन रहा था. 2008 में अभिनव बिंद्रा ने Men’s 10 meter Air rifle शूटिंग में भारत की झोली में गोल्ड लाकर रख दिया. यानी भारत पहली बार गोल्ड वाला देश हो गया. इसी ओलंपिक में हमने कुश्ती में भी 2 कांस्य पदक जीत कर देश को पचासवें स्थान पर पहुँचाया.
2012 लंदन ओलंपिक हुआ. ये वो साल था जब भारत के लिए ओलंपिक के इतिहास में एक अदभूत काम हुआ. 2012 में भारत के पदकों की संख्या का ऑल टाइम हाई रिकॉर्ड पर थी. इस ओलंपिक में दो रजत और चार कांस्य के साथ भारत ने 55 वे स्थान पर जगह बनाई थी.
शरद जोशी की वो बात अब झूट साबित होने लगी थी. उस पर सवालिया निशान लगने लगा था. लेकिन जो काम 2008 औऱ 2012 में हुआ भारत के लिए वो 2016 के रियो डि जेनेरियो के ओलंपिक में नहीं दोहराया गया. इस ओलंपिक में भारत को मात्र दो पदक एक रजत,एक कांस्य के साथ ही रहना पड़ा
अब आता है साल 2020 जहां फिर लगा की शरद जोशी शायद गलत है. 2020 में नीरज चोपड़ा के भाले ने (स्वर्ण) और मीरा बाई चानू, रवि कुमार दहिया दोनों रजत, बजरंग पूनिया, PV सिंधु, भारतीय हॉकी टीम, लवलीना बरगोहाई सभी कांस्य पदक के साथ लंदन ओलंपिक के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए भारत को 7 पदक के साथ टेली में 48 वां स्थान मिला.
भारत के खिलाड़ियों से उम्मीदों का बोझ बढ़ गया. देश में “खेलो इंडिया” जैसे आयोजन हुए जिसके चलते अब देश को 2024 पेरिस ओलंपिक में उम्मीद थी कि इस वर्ष पदक तालिका डबल डिजिट में पहुँचेगी. लेकिन हुआ वहीं जो हर बार होता है.
इस बार फिर हम एक बार वर्ष 2000 के रैंक पर पहुँच गये. यानी 71वे रैंक पर. इस साल भारत की झोली में केवल छह मेडल ही आए लेकिन बहुत सारी प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ियों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन तो किया और चौथे स्थान पर रहे विनेश के पदक के फैसले के बाद स्थिती में सुधार की गुंजाइश है लेकिन स्थिति बेहतर नहीं हो सकती.